दुर्गेशनन्दिनी बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का पहला प्रकाशित बंगला उपन्यास है, जिसे 1865 में प्रकाशित किया गया था। यह भारतीय उपन्यास साहित्य में एक मील का पत्थर माना जाता है और बंगला गद्य साहित्य को नई दिशा देने वाला प्रथम ऐतिहासिक-रोमांटिक उपन्यास है। इसमें ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, राजनीतिक संघर्ष, प्रेम, वीरता और पारिवारिक मूल्यों का अद्भुत संगम है। उपन्यास का कथानक 16वीं शताब्दी में मुग़ल शासनकाल के दौरान बर्दवान क्षेत्र में होते संघर्षों पर आधारित है। इसमें वीर राजपुत्र जगत सिंह और बंगाल के सामंत वीरेंद्र सिंह की बेटी दुर्गेशनन्दिनी के बीच का प्रेम केंद्र में है। इस प्रेम की राह में राजनीतिक दुश्मनी, युद्ध, छल, षड्यंत्र और सामाजिक प्रतिरोध जैसी बाधाएँ आती हैं, जिन्हें पार करते हुए प्रेम, निष्ठा और वीरता की विजय होती है। बंकिमचंद्र की कलम ने ऐतिहासिक तथ्यों को साहित्यिक सौंदर्य से सजाकर ऐसा भावुक और प्रेरणादायक उपन्यास प्रस्तुत किया, जिसने भारतीय पाठकों में इतिहास, संस्कृति और प्रेम के प्रति नई चेतना जागृत की। उनकी भाषा ओजस्वी, शैली भावनाप्रवण और पात्र जीवंत हैं। दुर्गेशनन्दिनी ने न केवल बंगला साहित्य को नया आयाम दिया, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लेखकों को भी प्रेरित किया।