आनंदमठ बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित एक ऐतिहासिक और राष्ट्रप्रेरक बंगला उपन्यास है, जिसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सांस्कृतिक आधारस्तंभों में गिना जाता है। यह उपन्यास 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में संन्यासी विद्रोह की पृष्ठभूमि में रचा गया है, जब बंगाल में ब्रिटिश शासन और सामाजिक अराजकता का दौर था। कहानी एक काल्पनिक आनंदमठ नामक स्थान के चारों ओर घूमती है, जहाँ एक गुप्त संगठन—देशभक्त संन्यासियों का दल—ब्रिटिश और मुगल अत्याचारों के विरुद्ध सशस्त्र क्रांति की योजना बनाता है। इस संगठन का उद्देश्य केवल स्वतंत्रता प्राप्त करना ही नहीं, बल्कि भारतमाता की पुनर्स्थापना और सांस्कृतिक पुनर्जागरण भी है। इस उपन्यास में “वंदे मातरम्” गीत की रचना की गई, जो आगे चलकर भारतीय राष्ट्रवाद का प्रतीक बन गया। उपन्यास के प्रमुख पात्र—महेंद्र, कपीतान, भीम और मातृभक्त संन्यासी—अपने कर्तव्य, त्याग, बलिदान और राष्ट्रप्रेम की पराकाष्ठा को दर्शाते हैं। बंकिमचंद्र ने अपने अद्भुत गद्य में धार्मिक प्रतीकों, वीरता और भावना को इस तरह बुना है कि यह रचना महज साहित्यिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक आंदोलन का स्वर बन गई। आनंदमठ केवल एक कहानी नहीं, बल्कि भारत के नवजागरण की आवाज़ है—एक ऐसा पाठ जो पाठक के हृदय में मातृभूमि के प्रति श्रद्धा, साहस और चेतना को जाग्रत करता है।