प्राचीन श्रावस्ती, पर्वतराज हिमालय की शिवालिक पर्वत शृंखलाओं की तलहटी में अवस्थित, हिमनद से पोषित अति उर्वर सघन वन क्षेत्र था। इस सुरम्य वन-क्षेत्र में विविध प्रकार के पेड़-पौधे तथा इनकी झुरमटों में असंख्य प्रकार के जीव-जन्तु विचरण करते थे। आदिम मानव भी इस घने वन क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से अपना जीवन यापन करता था।
मानव सभ्यता के विकास के क्रम में राज्य व राजाओं का शासन स्थापित हुआ। प्राचीन श्रावस्ती में समय-समय पर अनेक प्रतापी राजाओं का उत्थान व पतन हुआ। इनमें से एक इक्ष्वाकू वंश के प्रतापी राजा पृथु के वंशज थे।
सम्राट पृथु के पश्चात् क्रमशः विश्वगश्व, आर्द्र, युवानश्व और श्रावस्त सम्राट हुये थे। कहा जाता है कि युवानश्व के पुत्र सम्राट श्रावस्त ने हिमालय पर्वत की तलहटी में अचिरावती (वर्तमान राप्ती नदी) के तट पर एक सुन्दर नगर बसाया था इसलिए इन्हीं के नाम पर इस नगर का नाम श्रावस्ती पड़ा।
एक अन्य मतानुसार इस नगर का नाम पूर्व काल के ऋषि सावस्थ की तपोभूमि होने के कारण, श्रावस्ती पड़ा। प्राचीन काल में श्रावस्ती एक वैभवपूर्ण धन-धान्य से परिपूर्ण नगर था, जहाँ दैनिक जीवन में उपभोग होने वाली छोटी से बड़ी वस्तुओं की बहुतायत मात्रा में जन सामान्य के लिए उपलब्धता थी, जिसके कारण, इसका नाम सब्ब-अस्थि पड़ा जो कालान्तर में सावस्थी फिर श्रावस्ती हो गया।
बौद्धग्रन्थों में प्राचीन भारत (जम्बूदीप) सौलह महाजनपदों में विभाजित था। जिसमें कौसल राज्य एक प्रमुख राज्य था, तथागत बुद्ध के समय कोसल के राजा-प्रसेनजित थे जो सूर्यवंशी राजा अरिनेमि ब्रह्मदत्त के पुत्र थे। कोसल राज्य हिमालय के उत्तर तराई से लेकर दक्षिण में गंगातट तक तथा पूर्व में गण्डक नदी तक फैला था। इस राज्य के अन्तर्गत कपिलवस्तु, कौलिय, मौरिय तथा मल्ल गणराज्य सम्मिलित थे। श्रावस्ती का सम्पूर्ण विस्तार लगभग 300 योजन अर्थात्-4200 कि0मी0 था। कोसल राज्य की प्रमुख राजधानी साकेत (अयोध्या) थी तथा दूसरा श्रावस्ती था।"