नरत्तम पांडेय ने इस कृति में उन अनगिनत परिवारों की कहानियां प्रस्तुत की हैं, जिनके सदस्य विदेश की दूरस्थ भूमि पर चले गए और वापस आने का सपना अधूरा रह गया। यह उपन्यास सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि विस्थापन, पीड़ा और मानव संवेदना का जीवंत चित्रण है।
यह पुस्तक भारतीय समाज के उन पहलुओं को सामने लाती है, जिन्हें अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। “जो नहीं लौटे” उन अनसुने संघर्षों की आवाज़ है, जो विदेश में काम करने वाले श्रमिकों के जीवन से जुड़ी हुई है।
जो नहीं लौटे में लेखक ने अपने सशक्त शब्दों से उन सपनों और उम्मीदों की गहराई को पकड़ने का प्रयास किया है, जो उन मजदूरों ने छोड़ी हैं, और उन पर पड़े सामाजिक-आर्थिक प्रभावों को बखूबी उकेरा है। यह उपन्यास हर उस पाठक के लिए है जो समझना चाहता है उन अनदेखी पीड़ों और त्यागों को, जो हमारे देश के आर्थिक और सामाजिक ताने-बाने का हिस्सा हैं।
यह पुस्तक उन सभी के लिए है जो जानना चाहते हैं कि कैसे एक दूर देश में गए मजदूरों की कहानी, उनके परिवारों की टूटती उम्मीदें, और वे रिश्ते जो कभी वापस नहीं लौटे, भारत के सांस्कृतिक और सामाजिक इतिहास में अमिट छाप छोड़ते हैं।
जो नहीं लौटे केवल एक उपन्यास नहीं, बल्कि उन असंख्य आवाज़ों का प्रतिनिधित्व है जिन्हें कभी पूरी तरह सुना नहीं गया।