स्नेहांजलि प्रथम- 1999 में प्रकाशित हुई थी, अपने समय में बहुत चर्चित हुई। पद्मश्री विष्णु प्रभाकर जी, डाॅ0 जगदीश गुप्त, पद्मश्री हरिपाल सिंह जी, मधुर शास्त्री जी, चन्द्रसेन विराट जी, भारत भूषण जी, डाॅ0 गणेशदत्त सारस्वत, मानस चन्दन कितनी ही महान विभूतियों के नाम गिनाऊं 64 पेज की समीक्षायें सैंकड़ों- पत्र-पत्रिकाओं के पृष्ठ पर थी। विद्समाज का अपार स्नेह आशीर्वाद मुझे मिला। तीन स्नेहांजलियों का संकल्प पूरा न हो पाया पारिवारिक अस्त व्यस्तता के कारण। इसी मध्य सोनिया अपरिचिता संग कल्पनालोक में पिछले वर्ष प्रकाशित हुआ। पर्याप्त प्रशंसा मिली। अब यह द्वितीय स्नेहांजलि उत्कर्ष प्रकाशन मेरठ द्वारा प्रकाशित होकर स्नेही मित्रों के हाथों में पहुंच रहा है। कैसा है यह तो पाठकगण ही तय करेंगे। विभिन्न भावों के रंग-बिरंगे पुष्पों को गुलदस्ते में सजाने की मैंने भरसक चेष्टा की है। शीघ्र ही ‘सूरज की बेटी’ काव्य संकलन, उसके बाद तृतीय स्नेहांजलि... आपका स्नेह बना रहे ।