बुढ़िया मुसकराई। पर यह मुसकराहट वह नहीं थी। वह खड़ा हुआ। सामने का चेहरा भी वह नहीं था। वह समझ गया। अपने जज्बातों के साथ वह खुद बह गया था।
“आज जुमेरात है, है न?”
बुढ़िया के हाथ से फूलों की पुड़िया लेते हुए उसने कहा।
“हम इसी रोज अपना वादा निभाने आते हैं।”
“मुझे आप पर नाज है।”
“कैसे?”
छड़ी के सहारे दोनों साथ-साथ कब्रों की दिशा में आगे बढ़ रहे थे।
“लोगबाग तो जिंदगी में भी वादा वफा नहीं करते।” बूढ़े ने बताया, “और एक आप हैं कि...”
“वह देखिए!” छड़ी से इशारा करते हुए बुढ़िया बीच में बोल उठी।
“क्या है?”
“हमारे मरहूम की कब्र पर खिले दो फूल।”
—इसी पुस्तक से
प्रख्यात साहित्यकार, कलाकार एवं कार्टूनिस्ट आबिद सुरती की लेखनी की बात ही निराली है। उनकी रचनाएँ बच्चों से लेकर बड़ों तक में खूब प्रिय हैं। समाज में फैली कुरीतियों व भ्रांतियों को दूर कर समाज को दिशा देना उनकी लेखनी का प्रिय विषय है। यहाँ प्रस्तुत हैं उनकी बहुचर्चित-बहुप्रशंसित पाँच लंबी कहानियाँ, जो पाठकों के मन को गहरे तक छू लेंगी।