
Rajesh Patel
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स्त्रियाँ माँ हैं बेटी हैं बहन हैं यह सभी कविगण लिखते हैं,वह लिखती हैं स्त्रियाँ "इंसान" भी समझी जाएँ जो,अर्थ हीन हैं उन बे-वजह संबंधों में उफ़ान को ना बाँधा जाये,महासागर में उन नदियों के समर्पण का लेती है दबी-घुटी आवाज,जैसे किताबें समेट लेती है काला-सफेद इतिहास,जैसे नदी समेट लेती है सोने के हर्फ़ सी लिखी सभ्यता,तब धुंधली सी सुबह में समेट लेती है स्त्रियॉ थोड़े से पारिजात को अंतर्मन में सिमटे सुर्ख-स्याह होते अनगिनत ख्वाब.....