प्रेमचन्द (31 जुलाई 1880-8 अक्टूबर 1936) हिन्दी के सबसे बड़े और सबसे ज़्यादा लोकप्रिय कथाकार हैं। उनका मूल नाम धनपत राय था । उन्होंने लेखन की शुरुआत उर्दू से की। प्रेमचन्द की पहली पुस्तक 'सोज़े वतन' जो देशभक्ति की पाँच कहानियों का संग्रह है, अंग्रेज़ शासकों द्वारा ज़ब्त कर ली गयी थी । उसके बाद वे हिन्दी में लिखने लगे। उन्होंने कुल 15 उपन्यास, 300 से कुछ अधिक कहानियाँ, तीन नाटक, दस अनुवाद, बाल साहित्य की सात पुस्तकें और हज़ारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय और भूमिका आदि लिखे हैं। उनके जीवन काल में ही उन्हें 'उपन्यास सम्राट' माना गया। प्रेमचन्द की ख्याति मुख्यतः उनके कथा-साहित्य पर आधारित है।
प्रेमचन्द ने हिन्दी उपन्यास और कहानी को परिपक्वता दी। भारतीय समाज का दुख-दर्द और सामान्य लोगों का जीवन उनके लेखन में पहली बार इतनी विविधता और बारीकी से अभिव्यक्त हुआ । प्रेमचन्द की कालजयी कृति गोदान को भारत के किसान जीवन का महाकाव्य माना जाता है। रंगभूमि पर गांधीवाद का प्रभाव है। सेवासदन और कर्मभूमि सुधारवादी उपन्यास हैं। प्रेमचन्द के विपुल कथा-साहित्य में साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार, ज़मींदारी, क़र्ज़खोरी, गरीबी, राजनीतिक पराधीनता आदि का प्रभावशाली चित्रण मिलता है ।
प्रेमचन्द प्रगतिशील विचारधारा के लेखक थे। अपनी बात लोगों तक पहुँचाने के लिए प्रेमचन्द ने 'हंस' और 'जागरण' पत्रिकाओं का सम्पादन-प्रकाशन भी किया। प्रेमचन्द के उपन्यासों और कहानियों पर कई फ़िल्में बनाई गयीं। समय के साथ-साथ प्रेमचन्द की प्रासंगिकता बढ़ती जा रही है और कथाकारों की प्रत्येक पीढ़ी उन्हें अपना प्रेरणा-पुरुष मानती है।