VAPURVAI

· MEHTA PUBLISHING HOUSE
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वपुंच्या खास कथांची अपुर्वाई

‘‘....महाकाय वटवृक्ष तोडून त्याच्या लाकडाचे पैसे नक्कीच भरपूर येतील; पण त्याच्या कितीतरी पट अधिक, पिढ्या न् पिढ्या पुरणारी संपत्ती त्याची सावली असते. मला सावलीचं महत्त्व पटतं....’’ — लोकप्रिय कथाकार व. पु काळे आपल्या कथेत अशा अनोख्या प्रतिमांमधून सतत माणूसपणाचा उद्घोष करताना दिसतात. वेगवेगळ्या परिस्थितीत सापडलेली, संघर्ष करणारी, हसणारी, रडणारी, कुढणारी सर्वसामान्य माणसं रंगवताना, ते त्यांच्यातल्या असामान्यत्वाचा नेमका वेध घेतात आणि आपल्या प्रसन्न, खुमासदार, मिस्किल शैलीत त्याचा आविष्कार करतात. वपुंच्या लेखनातील हा पैलूच वाचकांना अपूर्वाईचा वाटतो. ‘वपुर्वाई’ यामुळेच वाचकांचं मन सहज जिंकून घेते... 

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