
KULDEEP KUMAR
माँ पर मैंने बहुत सी कविताएं पढ़ा तथा यू ट्यूब चैनलों पर सुना है,लेकिन सिर्फ माँ जैसा नहीं ।इस किताब को पढ़कर मुझे सिर्फ अपना बचपन ही नहीं याद आया बल्कि मेरी आँखें भी भर आईं।
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Kamlesh Patel
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'सिर्फ माँ' पुस्तक को मैंने ,बार-बार हैं पढ़कर देखे| न है कोई पुस्तक ऐसी , न ही 'सुमन' जैसे|| मधुर लेखनी है इसकी, सुन्दर उनके विचार हैं| 'सिर्फ माँ 'पुस्तक तो भाई, ज्ञान का भण्डार है||
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