हाँ वही यात्रा, जो अपने हमसफ़र के साथ किसी मंजिल पे निकल जाने वाली यात्रा, माँ बाप को तीर्थ कराने को ले जाने वाली यात्रा, किसी भटके को उसकी राह दिखाने वाली यात्रा, किसी को कामयाब बनाने वाली यात्रा..!!, लेकिन देखा जाये तो यात्रा बस अकेली है किसी हमसफ़र के बिना, यात्रा का कोई मोल नहीं बिना किसी साथी के |
शिवा..., जिसने मुझे खुद से मिलाया, जिसने मुझे जीने की उम्मीद जगाई, जिसको पा लेना मेरे लिए किसी भगवान को पा लेना जैसा था | मैं सब शुरू से शुरू करुँगी, मैं इनसे मिली, इनसे शादी कर ली, लेकिन शादी के दो साल तक हम सिर्फ अच्छे दोस्त ही रहे, फिर एक दिन इन्होने एक बच्ची को गोद लिया, नेत्री के आ जाने से हम दोनों की जिस्मानी दूरियां भी कम होने लगी, फिर युक्ता ने आपनी पहली मुस्कान के साथ हमारी जिंदगी में आई |
एक रोज मुझे पता चला की इनको कभी न ठीक होने वाली बीमारी ने आपने गिरफ्त में ले लिया है, मुझे उनके पास जाके रिया के बारे में पता चला, शिवा और रिया दोनों एक दुसरे को बेइंतहा प्यार करते थे, लेकिन जब मैं रिया से मिली तो उसके मन में शिवा के लिए बहुत नफरत भरी हुई थी, वो शिवा की सकल भी नहीं देखना चाहती थी |
मुझे शिवा की डायरी पढ़ने के बाद ये पता चला कि उनकी आखिरी इच्छा है की रिया आके उनसे ये कह दे कि “हाँ मुझे भी तुमसे अभी भी उतना ही प्यार है जितना पहले था”
जब मैं रिया के पास से वापस आ रही थी तो मेरे मन में बस एक ही सवाल था....
आखिर ये दोनों अलग क्यों हुयें.......??