बालकों का चरित्र निर्माण करने की दिशा में बालोपयोगी साहित्य का बहुत महत्त्व है; किंतु इस संबंध में एक सावधानी बरतने की आवश्यकता है। वह यह कि बच्चों के हाथों में दी जानेवाली पुस्तकें अमानवीय; गलत धारणाओं को जन्म देनेवाली और उनकी पहुँच के परे न हों। ऐसी रचनाएँ उनमें अनावश्यक हीन भावना और भय का संचार करती हैं। नवनिर्माण काल में ऐसा बाल साहित्य अपेक्षित है जो सहज भाव से उनमें भारतीय संस्कृति के प्रति आस्था; नए विश्वास; नई चेतना और नई आकांक्षाओं का सूत्रपात कर सके।
इस दृष्टि से गोस्वामी तुलसीदासजी के विश्व विख्यात ग्रंथ ‘रामचरितमानस’ से बढ़कर शिक्षाप्रद और कौन सी पुस्तक होगी। प्रस्तुत पुस्तक इसीका बालोपयोगी सरलीकरण है। देवों को आकर्षित करनेवाली हमारी धरती पर करुणा; संवेदना; कृतज्ञता; स्नेह; वात्सल्य; प्रेम; मातृ-पितृ भक्ति; आत्मबलिदान की भावनाओं की जो पावन गंगा राम चरित्र में प्रवाहित होती है; वैसी अन्यत्र कहाँ!
राम और रामकथा हमारी भारतीय संस्कृति के प्राण हैं। इनका जितना ही अधिक प्रचार-प्रसार बाल वर्ग में हो; अच्छा है। राम के जीवन से संबंध रखनेवाली ऐसी पुस्तकें इनी-गिनी ही हैं; जो बालक-बालिकाओं की सरल बुद्धि में आसानी से आ जाएँ। इसलिए जो बालक गोस्वामीजी की मूल अवधी भाषा से अपरिचित हैं; किंतु राष्ट्रभाषा के प्रेमी हैं; वे भी इससे लाभ उठा सकते हैं।
यह सरल रामायण सभी वर्ग के बाल एवं प्रौढ़ पाठकों को रुचिकर लगेगी; इसी विश्वास के साथ।Saral Ramayan by Shankar Baam: "Saral Ramayan" is likely a simplified retelling or interpretation of the epic Hindu mythological story, the Ramayana.
Key Aspects of the Book "Saral Ramayan":
Mythological Retelling: The book may present a simplified and easy-to-understand version of the Ramayana.
Moral and Spiritual Lessons: It might emphasize the moral, ethical, and spiritual teachings found within the Ramayana.
Cultural Significance: "Saral Ramayan" could highlight the cultural and religious importance of the epic story.
The author, Shankar Baam, may have a passion for making mythological stories accessible to a wider audience.