पथ के दावेदार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय का एक विचारोत्तेजक और संवेदनशील उपन्यास है, जिसमें एक युवा पीढ़ी के संघर्ष, सामाजिक बदलाव, और आत्म-खोज की यात्रा को गहराई से दर्शाया गया है। यह उपन्यास भारतीय समाज की उन परतों को उघाड़ता है जहाँ परंपरा, नैतिकता, शिक्षा, जातिगत भेदभाव और राजनीतिक चेतना का टकराव होता है। मुख्य पात्रों के माध्यम से लेखक यह प्रश्न उठाते हैं कि – समाज का सच्चा मार्गदर्शक कौन है? किसे पथ का दावेदार कहा जाए? क्या केवल संपन्नता और ज्ञान, समाज को दिशा देने के लिए पर्याप्त है या उसके लिए आत्मबल, नैतिक साहस और सामाजिक जिम्मेदारी जरूरी है? इस उपन्यास में युवा आदर्शवाद, प्रेम, सामाजिक जिम्मेदारियों और आत्मबलिदान की गहराई से पड़ताल की गई है। लेखक ने ग्रामीण और शहरी भारत की मानसिकता, विचारधाराओं और जातिगत संरचनाओं को सूक्ष्मता से प्रस्तुत किया है। "पथ के दावेदार" केवल एक सामाजिक उपन्यास नहीं, बल्कि यह युवा चेतना का दस्तावेज़ है—एक ऐसा साहित्यिक हस्तक्षेप जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना अपने समय में था।