झारखंड में जब ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रवेश हुआ तो यहाँ उसे पग-पग पर विद्रोह का सामना करना पड़ा। अठारहवीं शताब्दी से लेकर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन तक झारखंड की यह धरती धधकती रही और अंग्रेजी सत्ता को बार-बार मुँह की खानी पड़ी। पुस्तक में कुछ ऐसे नामचीन और गुमनाम नायकों की संक्षिप्त कहानी है। कुछ ऐसे नायक हैं, जो अपने क्षेत्र तक ही सीमित रह गए; कुछ अपने समाज द्वारा ही याद किए जाते रहे; कुछ बस जयंती व पुण्यतिथि पर ही अखबारों में छपते रहे। पहली बार यहाँ छोटानागपुर, सिंहभूम, सरायकेला से लेकर संताल परगना के क्रांतिकारियों को याद किया जा रहा है। क्रांतिकारियों की सूची तो बहुत लंबी है। फिर भी नई पीढ़ी के लिए यह पुस्तक बेहद महत्त्वपूर्ण है। ये पचास क्रांतिकारी पाँच हजार के प्रतिनिधि हैं।