Safed Buransh

Anand Mehra
4,4
23 umsagnir
Rafbók
94
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41% verðlækkun 7. jún.

Um þessa rafbók

जज्बातों को शब्दों का जामा पहना कर उन्हें कागज़ में उकेरकर खुला छोड़ने का शगल आनन्द मेहरा को बचपन से रहा हैं।  भावनाओं और शब्दों के मकड़जाल में हमेशा घिरे रहने वाले आनन्द मेहरा मूलतः उत्तराखंड के अल्मोड़ा ज़िले के एक छोटे से गाँव से ताल्लुक रखते हैं। पेशे से वह प्रबंधन व्यवसाय में है ,लेकिन उनकी आत्मा किस्सागोई में है। " सफ़ेद बुराँश " कहानी सँग्रह उनकी इसी लेखन यात्रा का एक नया पड़ाव है जहाँ वह अपनी अभी तक की यात्रा का अवलोकन करते हैं। हर कहानी जैसे न जाने कितनी कहानियाँ अपने में समेटे हुए है। उनका मानना है कि जीवन के इस कारवाँ का मकसद बेशक आगे बढ़ते रहना है , मगर इस कारवाँ के अलग -अलग पड़ाव पर आत्म -अवलोकन भी जरुरी है और उन सभी पलों को धन्यवाद कहने का समय भी है जो इंसान को इस पड़ाव तक लाने में सहायक सिद्ध हुए है फिर चाहे वो कोई इंसान हो या घटनाएँ हो।  

हम कितने भाग्यशाली है कि हम इंसान है - सोच सकते है , एहसास कर सकते है , सीख सकते है और लिखकर-बोलकर अपने अनुभव दूसरों के साथ साझा कर सकते है। इंसानी ज़िन्दगी का ये कारवाँ न जाने कब और कैसे शुरू हुआ , ये कोई नहीं जानता , बस कयास लगाया  सकता है। मगर , आज ये जिस रूप में भी  हमारे सामने है , वही सच है और इस कारवाँ को कहाँ तक जाना है - ये भी कोई नहीं जानता।  हरेक इंसान इस कारवाँ का हिस्सा बनकर इसे आगे बढ़ाने में सहायता ही कर रहा हैं। कितने छूटे , कितने जुड़े और कितने जुड़ेंगे - कारवाँ जारी रहेगा।  

"सफ़ेद बुराँश " ग्यारह कहानियों का दस्तावेज है जिसकी एक -एक कहानी अपने आप में कितनी कहानियों को समेटे है। किसी कहानी में संघर्ष है , किसी कहानी में रीति -रिवाज है , कोई कहानी उम्मीद का टोकरा है और कोई कहानी पहाड़ों में रह रहे लोगों की जिजीविषा दर्शाती है। 

आनन्द मेहरा की ये छठी प्रकाशित पुस्तक है।  इसे पहले उनकी " इंद्रधनुष - नवोदय के सात साल ", " मिगमीर सेरिंग और अन्य कहानियाँ ", "कलम ", " बुराँश के फूल " और “Happiness 1.1 Reloaded” प्रकाशित हो चुकी हैं। 

  

Einkunnir og umsagnir

4,4
23 umsagnir

Um höfundinn

जज्बातों को शब्दों का जामा पहना कर उन्हें कागज़ में उकेरकर खुला छोड़ने का शगल आनन्द मेहरा को बचपन से रहा हैं।  भावनाओं और शब्दों के मकड़जाल में हमेशा घिरे रहने वाले आनन्द मेहरा मूलतः उत्तराखंड के अल्मोड़ा ज़िले के एक छोटे से गाँव से ताल्लुक रखते हैं। पेशे से वह प्रबंधन व्यवसाय में है ,लेकिन उनकी आत्मा किस्सागोई में है। " सफ़ेद बुराँश " कहानी सँग्रह उनकी इसी लेखन यात्रा का एक नया पड़ाव है जहाँ वह अपनी अभी तक की यात्रा का अवलोकन करते हैं। हर कहानी जैसे न जाने कितनी कहानियाँ अपने में समेटे हुए है। उनका मानना है कि जीवन के इस कारवाँ का मकसद बेशक आगे बढ़ते रहना है , मगर इस कारवाँ के अलग -अलग पड़ाव पर आत्म -अवलोकन भी जरुरी है और उन सभी पलों को धन्यवाद कहने का समय भी है जो इंसान को इस पड़ाव तक लाने में सहायक सिद्ध हुए है फिर चाहे वो कोई इंसान हो या घट 

हम कितने भाग्यशाली है कि हम इंसान है - सोच सकते है , एहसास कर सकते है , सीख सकते है और लिखकर-बोलकर अपने अनुभव दूसरों के साथ साझा कर सकते है। इंसानी ज़िन्दगी का ये कारवाँ न जाने कब और कैसे शुरू हुआ , ये कोई नहीं जानता , बस कयास लगाया  सकता है। मगर , आज ये जिस रूप में भी  हमारे सामने है , वही सच है और इस कारवाँ को कहाँ तक जाना है - ये भी कोई नहीं जानता।  हरेक इंसान इस कारवाँ का हिस्सा बनकर इसे आगे बढ़ाने में सहायता ही कर रहा हैं। कितने छूटे , कितने जुड़े और कितने जुड़ेंगे - कारवाँ जारी रहेग 

"सफ़ेद बुराँश " ग्यारह कहानियों का दस्तावेज है जिसकी एक -एक कहानी अपने आप में कितनी कहानियों को समेटे है। किसी कहानी में संघर्ष है , किसी कहानी में रीति -रिवाज है , कोई कहानी उम्मीद का टोकरा है और कोई कहानी पहाड़ों में रह रहे लोगों की जिजीविषा दर्शाती है। 

आनन्द मेहरा की ये छठी प्रकाशित पुस्तक है।  इसे पहले उनकी " इंद्रधनुष - नवोदय के सात साल ", " मिगमीर सेरिंग और अन्य कहानियाँ ", "कलम ", " बुराँश के फूल " और “Happiness 1.1 Reloaded” प्रकाशित हो चुकी हैं।  

 

 

ा। 

नाएँ हो। 


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