व्यक्ति का जीवन प्रत्येक क्षण प्रत्येक कदम पर कुछ न कुछ ज्ञान एवं अनुभव समेटे रहता है। ज्ञानवान एवं मुमुक्ष व्यक्ति सदैव चैतन्य रहते हुए ज्ञान और अनुभवों को ग्रहण करते हैं और कर्मों के माध्यम से उसे चरित्रार्थ करते हैं।
मैं गीत प्रीत के रीत के,
हृदय से गाता हूँ।
अज्ञान के अंधकार में,
ज्ञान का दीप जलाता हूँ
कविता कहूँ या कोई गजल,
मन कहता है कि लिखता रहूँ।
हुनर कहूँ या कोई शगल,
या शब्दों को गुल खिलता कहूँ।
नाम लिखूँ या काम लिखूँ,
हर अदा को उसके लिखता रहूँ।
दर्पण यह संसार है जिसका,
हर शब्द में उसको दिखता कहूँ।
मानव उसको हृदय कहे तो,
मानवता को उसके लिखता रहूँ।
मन उसको भगवान कहे तो,
भक्ति में उसके बहता रहूँ।
प्रीत के वन उपवन में,
शब्दों के गुल खिलाता हूँ।
महक से उसके मानव के,
मानवता को महकाता हूँ।
मैं गीत........................
मुकेश कुमार यादव
MUKESH KUMAR YADAV
S/O LATE. SHREE BABURAM YADAV,
& RAMAWATI DEVI
RESIDENT OF-
VILL-MATIHANIA BUZURG,
POST-PADRAUNA,
DISTT-KUSHINAGAR,
STATE-UTTAR PRADESH
COUNTRY-INDIA
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