मुझे अच्छी तरह याद नहीं कि मैंने किस उम्र में लिखना प्रारम्भ किया लेकिन यह अच्छी तरह याद है कि वह उम्र परिपक्व न थी। कुछ तो था अन्तस में, जो लिखने को प्रेरित कर रहा था । मैं लिखता, ठहर जाता, फिर लिखता, फिर ठहर जाता। मैं विशुद्ध चिन्तक व मनीषी तो नहीं लेकिन सामाजिक विषमताओं से हृदय व्यथित व उद्वेलित जरूर होता है। मैं इस पुस्तक के माध्यम से कहानी विधा में आपके समक्ष प्रस्तुत हो रहा हूँ। मेरे ज़ेहन में यह कभी नहीं था कि मेरी कहानियाँ नायिका प्रधान होंगी, लेकिन कमोवेश मेरी लेखनी ने अधिकांश कहानियों को नायिका प्रधान के रूप में उकेरा और इस बात से मैं प्रसन्न हूँ।
सृष्टि की सृष्टा, सौम्या, उज्ज्वला, मान्या, आराध्या एवं लोक कल्याणी होने के बावजूद भी स्त्री कहीं सिसकती है तो अन्तस में बेहद पीड़ा होती है, आखिर इस सृष्टि का निर्माण इस अधिष्ठात्री के गर्भ से ही तो है। सम्भवत: कहीं नारी के प्रति मेरा समर्पण पार्श्व में युग-युग से सृष्टि के निर्माण की बिना थके उसकी अंतहीन यात्रा के प्रति मेरा नमन ही है।
शुभकामनाएँ।ूँ।
नाम- मनोज कुमार श्रीवास्तव
शिक्षा- स्नातक
जन्म- 14 जनवरी, 1969
जन्म स्थान- इलाहाबाद
व्यवसाय- राजकीय सेवा
लेखन प्रारम्भ- कुछ उस काल से जब संवेदनाएँ
जाग्रत हो रही थीं।
पता- लखनऊ
ई-मेल- manojkumarsrivastava@