कलकत्ता के पास बैरकपुर की सैनिक छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री की पैदल सेना के सिपाही नंबर 1446 का नाम मंगल पांडे। भारत के पहले स्वातंत्र्य समर की ज्वाला सन् 1857 में उन्हीं के प्रयासों से धधकी। दरअसल 20 मार्च; 1857 को सैनिकों को नए प्रकार के कारतूस दिए गए। उन कारतूसों को मुँह में दाँतों से दबाकर खोला जाता था। वे गाय और सूअर की चरबी से चिकने किए गए थे; ताकि हिंदू और मुसलिम सैनिक धर्म के प्रति अनुराग छोड़कर धर्मविमुख हों। 29 मार्च को मंगल पांडे ने कारतूसों को मुँह से खोलने की उच्चाधिकारियों की आज्ञा मानने से इनकार कर दिया। सेना ने भी उनका साथ दिया। लेकिन ब्रिटिश उच्चाधिकारियों ने छलबलपूर्वक उन्हें बंदी बना लिया और आठ दिन बाद ही 8 अप्रैल; 1857 को उन्हें फाँसी दे दी। उनकी फाँसी की खबर ने देश भर में चिनगारी का काम किया और मेरठ छावनी से निकला विप्लव पूरे उत्तर भारत में फैल गया; जो स्वातंत्र्य समर के नाम से भी प्रसिद्ध हुआ। इसने मंगल पांडे का नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज करा दिया। भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के एक प्रमुख हस्ताक्षर की प्रेरणाप्रद जीवनगाथा; जो अन्याय और दमन के प्रतिकार का मार्ग प्रशस्त करती है।
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ஆசிரியர் குறிப்பு
जन्म : 5 अक्तूबर, 1967 (दरभंगा, बिहार)। शिक्षा : वाणिज्य स्नातक। प्रकाशित कृतियाँ : छह कविता संकलन, दो उपन्यास, पचास से ज्यादा विविध विषयक पुस्तकें; असमिया से पचपन पुस्तकों का अनुवाद सम्मान : सोमदत्त सम्मान, जयप्रकाश भारती पत्रकारिता सम्मान, अनुवादश्री सम्मान, जस्टिस शारदाचरण मित्र स्मृति भाषा सेतु सम्मान और अंतरराष्ट्रीय पुश्किन सम्मान। संप्रति : गुवाहाटी से प्रकाशित हिंदी दैनिक ‘सेंटिनल’ के संपादक। संपर्क : बी1, चौथा तल, ग्लोरी अपार्टमेंट, तरुण नगर मेन लेन, गुवाहाटी781005 (असम) दूरभाष : 09435103755 इमेल : [email protected]
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