राजगिरि का वेणुवन प्राकृतिक सौन्दर्य के मध्य स्थित है जिसे प्रथम बौद्धविहार का श्रेय प्राप्त है। राजगिरि के वेणुवन में 527 ई०पू० में शाक्यमुनि बुद्ध ने अपना दूसरा वर्षावास व्यतीत किया था जिसके फलवस्वरूप सद्धम्म के नैसर्गिक प्रवाह का वास्तविक परिदृश्य तथा प्रेरणास्त्रोत बन गया था । मगध में शाक्यमुनि बुद्ध के अग्र श्रावक आयुष्मान सारिपुत्त तथा आयुष्मान महामोग्गलान सहित हजारों थेर व थेरियां धम्म व विनय का पालन करके अर्हत पद को प्राप्त कर लिया था। जिनके अनुभव उदान के रूप में मानव के धम्म- संसार में गुजांयमान है।
कालान्तर में राजा अजातशत्रु ने मगध की राजधानी राजगिरि से पाटलिपुत्र स्थानान्तरित कर दिया था। जो सत्ता तथा व्यापार का प्रमुख केन्द्र बन गया था। भारतीय प्राचीन इतिहास में अखण्ड भारत का स्वरूप तथा स्वर्णिम युग मौर्य-युग था। मौर्य-वंश के संस्थापक सम्राट चन्द्रगुप्त थे जो पिप्पलिवन मोरिय के राजा विशाल गुप्त के पुत्र थे। सम्राट चन्द्रगुप्त के पुत्र राजा विन्दुसार तथा देवानां प्रिय सम्राट अशोक बौद्धधम्म के महान अनुयायी था। सम्राट अशोक राजा विन्दुसार के पुत्र थे। जिसने अपने प्रशासनिक व आर्थिक सुधार-वादी नीतियां के द्वारा मगध राज्य को शक्ति सम्पन्न बनाया तो अपने धम्म नीति से सम्पूर्ण जम्बूद्वीप में शाक्यमुनि बुद्ध के प्रेम, प्रज्ञा, करूणा, अहिंसा मैत्री, शान्ति, उपेक्षा मुदिता, त्याग समाधि समता न्याय तथा विश्वबन्धुता के सन्देश को जन-जन तक पहूचायाँ।
प्रियदर्शी सम्राट अशोक द्वारा स्थापित किये गये संघाराम स्तूप, स्तम्भ, शिलालेख, गुहालेख के भग्नावशेष वर्तमान में उसके महत्ता के गौरव गाथा प्रदर्शित कर रहे हैं।
इस पुस्तक में मगध राज्य में जन्मे बौद्ध-धम्म के अनुयायी, शासको उपासको थेर व थेरी के जीवन-गाथा तथा दर्शनीय स्थलो का छायाचित सहित वर्णन किया गया है जो पुस्तक को रोचक तथा ज्ञानवर्द्धक बनाते है।"