‘‘यस, मैम।’’ नैंसी ने कड़कती आवाज में जवाब दिया, लेकिन वह अब भी अपने हाथ में लिये हुए घड़े को झाड़ने-पोंछने में लगी हुई थी।
‘‘नैंसी!’’ मिस पॉली की आवाज अब बेहद कर्कश हो चुकी थी—‘‘मैं जब तुमसे बात करूँ, तो तुम काम-धाम बंद कर मेरी बात ध्यान से सुना करो।’’
नैंसी ऊपर से नीचे तक बुरी तरह काँप उठी। उसने एक झटके में उस मटके और कपड़े को नीचे रखा। जल्दी में मटका लगभग गिरते-गिरते बचा, साथ ही वह खुद भी बुरी तरह लड़खड़ा गई।
‘‘यस, मैम, मैं...मैं...अब से ऐसा ही करूँगी।’’ उसने मटके को सँभाला और तुरंत सामने की ओर घूम गई। ‘‘मैं तो बस अपना काम कर रही थी, क्योंकि आप ने ही कहा था कि मैं सारे बरतन जल्दी से साफ कर दूँ।’’
मालकिन की त्योरियाँ चढ़ गईं।
‘‘ठीक है, ठीक है, नैंसी। मैंने तुमसे सफाई नहीं माँगी, बस ध्यान से अपनी बात सुनने को कहा था।’’
इसी उपन्यास से
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मानव मन को छू लेनेवाला सार्वकालिक प्रसिद्ध उपन्यास, जिसमें बालमन की अल्हड़ता, संवेदना और सरोकारों का बहुत ही मार्मिक चित्रण किया गया है।