यह संसार महासागर है जिसमें आदमी लहर की तरह आता है और चला जाता है। न पिछले जन्म का पता, न अगले जन्म की जानकारी। बस, इस जन्म में अपने कर्मों के फल के अनुसार जीवन जीता है। कर्म की गति अति गहन है। कुछ कहते हैं मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है तो कुछ कहते हैं मनुष्य कठपुतली मात्र है। जब से मैंने होश सँभाला, सुनने में आया कि जो दिखाई देता है वह सत्य नहीं है और जो दिखाई नहीं देता है वही सत्य है। खूब मंथन किया पर समझ नहीं पाती थी। क्रमशः भाव स्पंदित होने लगे तब अनुभव की धारा से समाधान के द्वार खुलते चले गए। प्रारंभ से ही मुझे छोटी-छोटी चीजें बहुत पसंद आती थीं। छोटा घर, छोटा फर्नीचर, छोटा आँगन और छोटा दायरा। इसी क्रम में जापान का लघु किन्तु महिमावन्त छन्द हाइकू, बहुत ही पसंद आया और मैंने अपने भावों के स्पंदन को इसके विन्यास में पिरोना शुरू कर दिया। पाँच, सात, पाँच अक्षरों का यह प्यारा-सा छंद मेरी लघुता का खूबसूरत प्रतीक बन गया। इधर-उधर बिखरे पड़े थे, तो एक दिन इकट्ठे करने का निमित्त भी बन गया। ये हाइकू मेरी निजी यात्रा का निचोड़ है और आज आपके हाथों में हैं। इनमें से किसी को कुछ भी अच्छा लगेगा तो मुझे खुशी होगी।