—स्व० डॉ. धर्मवीर भारती
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डॉ० कुमार विश्वास उम्र के लिहाज से नये लेकिन काव्य-दृष्टि से खूबसूरत कवि हैं। उनके होने से मंच की रौनक बढ़ जाती है। वह सुन्दर आवाज़, निराले अंदाज और ऊँची परवाज़ के गीतकार, ग़ज़लकार और मंच पर कहकहे उगाते शब्दकार हैं। कविता के साथ उनके कविता सुनाने का ढंग भी श्रोताओं को नयी दुनिया में ले जाता है। गोपाल दास नीरज के बाद अगर कोई कवि, मंच की कसौटी पर खरा लगता है, तो वो नाम कुमार विश्वास के अलावा दूसरा नहीं हो सकता।
—निदा फाज़ली
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डॉ० कुमार विश्वास हमारे समय के ऐसे सामर्थ्यवान गीतकार हैं, जिन्हें भविष्य बड़े गर्व और गौरव से गुनगुनाएगा।
—गोपालदास 'नीरज'
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आँखों में गज़ब का सम्मोहन, मंच पर जबरदस्त पकड़, गीतों में बाँध लेने वाली रसमयता, समय-अवसर के अनुकुल स्मरण-शक्ति और वाल्मीकि रामायण से लेकर राधेश्याम रामायण तक का विराट ज्ञानकोष, इन सब चीजों का एक साथ होना डॉ० कुमार विश्वास कहलाता है। देशभर में तो उसका जादू सर चढ़कर बोलता ही है, मैंने विदेशों में भी ऐसे श्रोता देखे हैं, जिन्हें उसके पूरे-पूरे गीत याद हैं। बाजार की भाषा में कहे तो वो इस पीढ़ी का एकमात्र I.S.O. कवि है।
—हास्य कवि सुरेन्द्र शर्मा
डॉ. कुमार विश्वास का जन्म पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ियाबाद जिले में, 10 फरवरी 1970 को वसन्त पंचमी के दिन हुआ।
कलावादी माँ का लयात्मक लोकज्ञान व प्राध्यापक पिता का भयात्मक अनुशासन साथ-साथ मिले। इंजीनियरिंग से लेकर प्रादेशिक सेवा तक और कामू से लेकर कामशास्त्र तक, थोक में भटके, पर अटके सिर्फ साहित्य पर।
आईआईटी से लेकर आईटीआई तक और कुलपतियों से लेकर कुलियों तक, उनके चाहने वालों की फेहरिस्त भारत की लोकतान्त्रिक समस्याओं जैसी विविध व अन्तहीन है। वे टीवी की रंगीन स्क्रीन से लेकर एफएम रेडियो के माइक्रो स्पीकर तक हर जगह सुनाई दिखाई देते हैं। करोड़ों युवा उनसे प्रेरणा पाते हैं और साहित्य को विस्तार देने के सुपथ पर बढ़ते हैं।
अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं-इक पगली लड़की के बिन (1996), कोई दीवाना कहता है (2007), फिर मेरी याद (2019) और ब्रज व कौरवी लोकगीतों में लोकचेतना (2021)। उन्होंने जॉन एलिया पर देवनागरी लिपि में प्रकाशित चार पुस्तकें-मैं जो हूँ 'जॉन एलिया' हूँ, लेकिन, यानी और गुमान का सम्पादन भी किया है। वर्तमान में उनकी तीन अन्य पुस्तकें प्रकाशनाधीन हैं।