Shriramkrishna Paramhans: Demanding Ebook Book

· Prabhat Prakashan
Ebook
280
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क्या मैं देह हूँ ? नहीं हूँ। क्या मैं प्राण हूँ? पर बाहर जाती श्वास को वापस अंदर कौन ले आता है? और जब वह ऐसा करने से चूक जाता है अथवा जान-बूझकर नहीं करता है, तो वह 'मैं' भी तो नहीं रह जाता।

बहुत आनंद आया, जब श्रीरामकृष्ण द्वारा नरेंद्र को कहे गए ये महावाक्य पढ़े, "ईश्वर है। मैं उसे देख रहा हूँ, जैसे तुम्हें देख रहा हूँ। कदाचित् उससे भी अधिक स्पष्टता के साथ उसे देख रहा हूँ। तुम भी उसे देख सकते हो। उससे बात कर सकते हो।" मुझे ये वाक्य पूर्णतः सत्य लगे। मेरे प्रश्नों का समाधान हो गया था। यह एक बहुत अच्छी बात हुई। पर यहाँ से एक लंबी, कठिन, जटिल यात्रा प्रारंभ होती है।

इस राह पर देर-सबेर सबको आना पड़ेगा। श्रीरामकृष्ण ने भक्ति का साधन भी बता दिया। यह उनकी महती कृपा थी कि इसके बाद श्रीरामकृष्ण-विवेकानंद साहित्य को लगातार पढ़ने का अवसर मिला और जब मैं पढ़ने से ऊबने लगता तो श्रीरामकृष्ण मिशन की किसी- न-किसी शाखा से मुझे भाषण देने के लिए बुला लिया जाता। इस तरह मुझसे एक तरह से जबरन स्वाध्याय भी कराया गया।

श्रीरामकृष्ण के जीवन के अध्ययन की पूर्णाहुति के रूप में यह कृति उनकी विशेष कृपा से संपन्न हो सकी है।

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