Dagalbaj Shivaji

· Saptarshee Prakashan
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এই ই-বুকের বিষয়ে

छत्रपती शिवाजी महाराजांवर आजवर अनेक पुस्तके प्रकाशित झालेली आहेत. सर्वच लेखकांनी महाराजांची थोरवी आणि त्यांचा दृष्टिकोन त्यांच्या पुस्तकातून मांडला आहे. परंतु या सगळ्यांपेक्षा प्रबोधनकारांनी वेगळा दृष्टिकोन मांडला आहे. ‘...अर्जुन ‘बगलबाज’ होता. काका, मामा, आप्पा, बाबा यांना कसे मारू या क्षुद्र कल्पनेला बळी पडन विहित कर्तव्याला बगल मारून पळत होता. पण शिवाजी राजे तसे नव्ह्ते. ते वाकड्या दाराला वाकडी मेढ ठोकून समोर येईल त्या मुकाबल्याचा फडशा पाडणारे ‘दगलबाज’ होते. बगलबाज अर्जुन आणि दगलबाज शिवाजी या तुलनेत विचारांचे ब्रह्मांड आहे. भारतीय समरभूमीवरील अर्जुन आणि प्रतापगडावर अफझलखानासमोर उभा ठाकलेले छत्रपती, यांची तुलना केली, तर अर्जुनापेक्षा शिवाजी शतपट श्रेष्ठ ठरतो. ‘दगलबाज’ आणि ‘दगाबाज’ यातील भेदच लोकांना समजत नाही. दगलबाज म्हणजे डिप्लोमॅट...!

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