BHOKARWADITIL RASVANTIGRUHA

· MEHTA PUBLISHING HOUSE
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दुकानदारीची सदोबांची काय कल्पना होती, कोण जाणे! गिNहाईक वाढवण्यासाठी नित्य काही नवे करावे लागते, निरनिराळ्या योजना आखाव्या लागतात, दुकानाची आकर्षक सजावट करावी लागते, या गोष्टी त्यांच्या गावीही नव्हत्या. अर्थात हा त्यांचा दोष नव्हता. गावचे वातावरणच तसे होते. सगळेच दुकानदार एकाच छापातले गणपती होते. दुकान मांडून बसायचे, गिNहाईक आले तर सौदा करायचा, नाही आले तर निवांत बसायचे. मुद्दाम कसलीही हालचाल करायची नाही, अशीच एवूâण पद्धत होती. आधुनिक विक्रीकलेचा गंधही त्या काळात गावाला नव्हता. याचा परिणाम व्हायचा तोच झाला. भरभराटीची आणि सुबत्तेची काही वर्षे संपली. गिNहाईक कमी-कमी होत गेले. फार हाल झाले त्याचे... शेवटी सदोबा नेवासकर अन्नान्न करीत मेला!

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