कथा चार महाद्वीपों तक फैली है—एशिया, अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका। इसकी प्रमुख पात्र नैन्सी भारतीय है। नैन्सी अपनी निजी जीवन-गाथा से उपन्यास को वैश्विक उपन्यास बना देती है। अपने मसाज पार्लर में आने वाले एक ग्राहक—पॉल से उसकी आत्मीयता हो जाती है और मालिश सत्र के दौरान उसे वह अपनी जीवन-गाथा किश्तों में सुनाती है। जून में अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान जब मेरी लेखिका से फ़ोन पर बात हुई तो उन्होंने इसे 'ग्लोबल उपन्यास' कहा है और मैं कह सकता हूँ कि यह अपने प्रकार का पहला उपन्यास है जिसकी कथा और पात्र चार महाद्वीपों तक विस्तृत हैं। प्रवासी साहित्य में अधिकांशतः भारत और प्रवासी देश की संयुक्त कथा मंचों के उपन्यास-कहानी मिलेंगे और कुछ में तीन देशों में भी कथा-सूत्र निर्मित होते हैं, लेकिन चार महाद्वीपों को कथा-मंच बनाकर भी लेखिका ने कथा को बिखरने नहीं दिया है। कथा नायिका नैन्सी देश बदलने के साथ पति भी बदलती है और कथा के नये प्रसंग सामने आते हैं तथा एक स्त्री का जीवन सत्य चार दिशाओं से उद्घाटित होता है। वस्तुत: जीवन का सत्य यह है कि मनुष्य के जीवन में कुछ सत्य, कुछ मूल्य एवं कुछ अनुभूतियाँ शाश्वत होती हैं और कुछ संस्कृति, परिवेश एवं निजता के कारण भिन्न-भिन्न स्थानों तथा सन्दर्भों में बदल जाती हैं। यहाँ तक कि मानवीय रिश्तों में भी ये दोनों स्थितियाँ रहती हैं। नैन्सी अपने जीवन में तीन पति बदलती है। हर बार कुछ नये-पुराने अनुभव होते हैं। उसके जीवन से जो शाश्वत अनुभव निकलता है वह है कि हर मानवीय रिश्ता परस्पर सद्भाव, सामंजस्य, समझौता एवं सहचर भाव पर टिका है और इसके लिए निजता तथा अंहकार से मुक्ति आवश्यक है। हर मानवीय सम्बन्ध में सुख-दुःख होते हैं, संघर्ष-समर्पण होता है, अनुकूलता-प्रतिकूलता होती है, लेकिन स्थायित्व तभी आता है, सम्बन्धों में मधुरता तभी आती है जब दोनों पति-पत्नी अहम् को त्याग कर एक-दूसरे के लिए बन जाते हैं।—भूमिका से
अर्चना पैन्यूली -
शिक्षा: एम.एससी., बी.एड. (गढ़वाल वि.वि.)।
प्रकाशित कृतियाँ: उपन्यास–'परिवर्तन', 'वेयर डू आई बिलांग', 'पॉल की तीर्थयात्रा'; कहानी संग्रह–'हाईवे E-47', 'कितनी माँएँ हैं मेरी'।
सम्मान/ पुरस्कार: इंडियन कल्चरल सोसाइटी, डेनमार्क द्वारा स्वतन्त्रता दिवस समारोह पर 'प्राइड ऑफ़ इंडिया' सम्मान से सम्मानित राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त मैमोरियल ट्रस्ट द्वारा उपन्यास 'वेयर डू आई बिलांग' के लिए राष्ट्रकवि प्रवासी साहित्यकार पुरस्कार से सम्मानित। 'पॉल की तीर्थयात्रा' फेमिना सर्वे द्वारा वर्ष 2016 के सर्वश्रेष्ठ दस उपन्यासों में घोषित। केन्द्रीय हिन्दी संस्थान द्वारा पद्मभूषण डॉ० मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार से सम्मानित।