Ahun Gaon Ka Itihas

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"गाँवों के लोगों के सामने प्राचीन काल से ही प्राकृतिक आपदाओं, जंगली जानवरों, आक्रमणों, लुटेरों और शासकों द्वारा पैदा की गई अनेक चुनौतियाँ रहीं हैं जिनसे जीवन और आत्मसम्मान दोनों खतरे में रहे हैं। ज़रा सोचिये ऐसी स्थितियों से वर्तमान तक का सफर कैसा रहा होगा ? यदि आपका या आपके पूर्वजों का गाँव से सम्बन्ध रहा है या आप की ग्राम्य जीवन में रूचि है तो यह पुस्तक आपके लिए अत्यंत उपयोगी है । यह पूर्वजों के बारे में जानने की जिज्ञासा भी पैदा करती है और जानने के रास्ते भी सुझाती है ।


गाँव का जागीरदार हुक्म देता है कि गाँव में आने वाली हर नई दुल्हन पहले उसके पास रहेगी....., एक अकेला आदमी सत्तर डकैतों को मारता है....., एक माँ अपने जवान पुत्र का वध करने वाले को भरी सभा में पुरस्कृत करती है...., एक महिला अपने गले की हंसली चुराने वाले को मुंह बोला भाई बनाती है...., एक व्यक्ति अपने दुश्मन को गले लगा कर रोता है..., सबको खुली चुनौती देने वाला पहलवान विरोधी से हाथ मिलते ही कुश्ती छोड़ देने की घोषणा करता है........। ये घटनाएं किसी कल्पित कहानी या फिल्म की पटकथा नहीं बल्कि इसी पुस्तक में वर्णित आहूँ गाँव के इतिहास की कुछ घटनाएँ हैं।


राष्ट्र के वृहत इतिहास में गाँव सूक्ष्म परन्तु महत्वपूर्ण इकाई हैं लेकिन प्रायः उनका लिखित इतिहास नहीं मिलता। यह किंवदंतियों, परम्पराओं, प्राचीन दस्तावेजों, भवनों, गाथाओं और ग्रामनिवासियों की स्मृतियों में मिलता है जो समय के साथ-साथ मिटता भी जाता है। ऐसे ही महत्वपूर्ण स्रोतों के लगभग सात वर्षों के निरंतर मंथन से निकला है कुरुक्षेत्र की पुण्यभूमि पर स्थित आहूँ गाँव का इतिहास जिसका सीधा सम्बन्ध ऋग्वेद, पुराणों और महाभारत से है, जिसमें सदियों से अलग-अलग परिवारों के गाँव में आकर बसने मध्यकालीन स्थितियों, जागीरदारी, पीढ़ियों से सुनाई जा रही रुचिकर घटनाओं, महामारियों, दुर्भिक्षों और 1947 के विभाजन की त्रासदी से लेकर वर्तमान स्थितियों तक का समावेश है। यह एक गाँव का ही इतिहास नहीं बल्कि ग्रामीण इतिहास का दिग्दर्शन है। पढ़िए गाँवों के इतिहास-लेखन की नई परंपरा का सूत्रपात करता एक पूर्णतः नई तरह का ग्रन्थ !।

O autoru

सन 1964 में हरियाणा के कैथल जिले के आहूँ गाँव में जन्मे शिव कुमार ने वर्ष 1987 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से वकालत और वर्ष 2000 में वहीं से एल. एल. एम. पास किया । इनकम टैक्स इंस्पेक्टर परीक्षा, 1986, हरियाणा सिविल सेवा (न्यायिक) परीक्षा, 1989 तथा सिविल सर्विसेज परीक्षा, 1988 पास की और सिविल सर्विसेज परीक्षा के आधार पर 1991 से 2006 तक के 14 वर्ष केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल ( CISF ) में रहे और सीनियर कमांडेंट के पद तक पहुंचे। इसी के दौरान सन 2001 से 2004 तक दिल्ली इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन में कानून के डिप्टी डायरेक्टर भी रहे। वर्ष 2006 में CISF से त्यागपत्र देकर निजी क्षेत्र में प्रवेश किया और अब दिल्ली में एक बिजली कंपनी में सेवारत हैं। लेखक की कानून, इतिहास, धर्म, साहित्य, विज्ञान इत्यादि अनेक विषयों में रुचि है। हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी भाषाओं के अतिरिक्त थोड़ी बहुत उर्दू, फारसी और पंजाबी भाषाएँ भी जानते हैं।

पुस्तकें: आहूँ गाँव का इतिहास, कौशल्य वंशावली, आहूँ के ब्राह्मण । 

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